15 जून 2025 की रात पुणे के लोगों के लिए हमेशा के लिए एक दर्दनाक याद बन गई। इंद्रायणी नदी पर स्थित एक पुराना लोहे का पुल अचानक भरभराकर गिर गया। उस समय पुल पर कई लोग और वाहन मौजूद थे। यह हादसा सिर्फ एक पुल के टूटने तक सीमित नहीं था, बल्कि यह हमारे बुनियादी ढांचे की खस्ताहाल स्थिति, सरकारी लापरवाही और मानव जीवन की अनदेखी का प्रतीक बनकर सामने आया।
पुणे के देहूरोड के पास कुंडमाला क्षेत्र में स्थित यह लोहे का पुल वर्षों पुराना था और नियमित देखरेख के अभाव में जर्जर हो चुका था। रविवार शाम को जब बड़ी संख्या में लोग पुल पर थे, तभी अचानक इसका एक हिस्सा टूटकर इंद्रायणी नदी में समा गया। कुछ ही क्षणों में चीख-पुकार मच गई। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, लेकिन कई लोग पानी में गिर गए।
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घटना शाम 6:45 बजे के करीब हुई, 4 लोगों की मौत हो गई। 50 से अधिक लोगों को बचाया गया। 7 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए, जिनमें से कुछ ICU में भर्ती हैं,दर्जनों वाहन भी नदी में गिर गए।
घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस, दमकल विभाग और एनडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंच गई। रातभर सर्च ऑपरेशन चलता रहा। अंधेरा, नदी की तेज धाराएं और मलबा बचाव कार्य में बड़ी बाधाएं बनकर सामने आए, लेकिन टीमों ने बहादुरी से काम किया।
प्रशासन की कार्रवाई:
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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने त्वरित जांच के आदेश दिए।
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मृतकों के परिवार को ₹5 लाख की सहायता राशि देने की घोषणा हुई।
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घायलों के इलाज का खर्च राज्य सरकार उठाएगी।
जिम्मेदारी का सवाल
इस हादसे ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं:
1. पुल की मरम्मत क्यों नहीं हुई?
स्थानीय नागरिकों ने कई बार पुल की जर्जर हालत को लेकर शिकायतें दर्ज की थीं। बावजूद इसके न तो उसकी मरम्मत की गई, न ही कोई चेतावनी बोर्ड लगाए गए।
2. प्रशासन की लापरवाही
इस तरह की पुरानी संरचनाओं की नियमित निगरानी और जांच आवश्यक होती है। जब पुल की क्षमता खत्म हो गई थी, तो लोगों का उस पर चलना प्रशासन की असफलता को दर्शाता है।
3. तकनीकी निरीक्षण की कमी
किसी भी पुल की आयु होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस पुल की उम्र पूरी हो चुकी थी। बावजूद इसके उसका उपयोग होता रहा। यह दर्शाता है कि तकनीकी निरीक्षण या तो हुआ ही नहीं या उसे नजरअंदाज किया गया।
पुणे का यह पुल हादसा एक गहरी चेतावनी है – एक ऐसी चेतावनी जिसे अब नजरअंदाज करना असंभव है। यह समय है जब सरकार, प्रशासन और समाज को मिलकर यह तय करना होगा कि हमें अपने नागरिकों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करना है।