22 अप्रैल 2025 को जम्मू और कश्मीर के पहलगाम (Baisaran मेड़ो, पास-पहलगाम) में एक भयानक आतंकी हमला हुआ, जिसमें लगभग 26 पर्यटकों की जान चली गई और कई अन्य घायल हुए। यह हमला इसलिए भी चिंताजनक था क्योंकि यह एक ऐसे क्षेत्र में हुआ, जहाँ आमतौर पर पर्यटकों की संख्या अधिक होती है और सुरक्षा अपेक्षाकृत कम होने का अनुमान था — हमलावरों ने इसकी एक खूबसूरत लेकिन सुनसान घाटी का फायदा उठाया।
घटनास्थल की दूरदराजी, कठिन भूगोल और मोबाइल नेटवर्क की कमज़ोर कनेक्टिविटी ने हमले के तुरंत बाद मदद पहुँचाने में बाधा उत्पन्न की। शुरुआती जांच में यह भी बात सामने आई कि सुरक्षा तैनाती वहां न्यूनतम थी — वहां पुलिस, पैरा मिलिट्री या निगरानी इकाइयों की उपस्थिति सीमित थी।
हमले के बाद झलकने वाले कारण
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खुफ़िया चूक
शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, सुरक्षाबल और खुफिया एजेंसियों को चेतावनी मिली हुई थी। SMAC (Subsidiary Multi-Agency Centre) के जरिये जानकारी पहुंची थी, लेकिन इसे पर्याप्त गंभीरता से नहीं लिया गया। -
भौगोलिक और सुरक्षा चुनौतियाँ
Baisaran घाटी ऐसी जगह है जहाँ सड़क पहुंच सीमित है, और वह पर्यटक-पसंदीदा है। इसी वजह से आतंकियों ने इस असुरक्षित हिस्से को निशाना बनाया। -
आतंकवादी संगठन और जिम्मेदारी
“The Resistance Front” (TRF), लश्कर-ए-तोइबा (LeT) का एक प्रॉक्सी संगठन, इस हमले की ज़िम्मेदारी ले चुका है। उसके बाद इस समूह को अमेरिका ने विदेशी आतंकवादी संगठन (FTO) घोषित किया।
सरकार की प्रतिक्रिया और कार्रवाई
हमले के बाद भारतीय केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने तेज़ी से कदम उठाए।
1. राजनैतिक और कूटनीतिक कदम
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कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान के साथ कुछ कड़े कदम उठाए जाएँ।
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भारत ने 1960 का इंडस वाटर ट्रीटी निलंबित कर दिया, जिसे पाकिस्तान के साथ साझा किए गए जल संसाधन पर आधारित था।
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दोनों देशों ने अपने राजनयिक मिशनों में स्टाफ कमी की — उच्चायोगों के दर्जे को डाउनग्रेड करने तथा सैन्य-अनुशासकीय सलाहकारों को निकालने का फैसला लिया गया।
2. सुरक्षा और सैन्य प्रतिक्रिया
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भारतीय सेना और पुलिस को तुरंत सक्रिय किया गया। LG (लीफ्टिनेंट गवर्नर) मनोज सिन्हा ने सुरक्षा बलों को इलाके में भेजने का आदेश दिया।
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भरोसा दिलाया कि आतंकवादियों और उनकी साजिश रचने वालों को “लाउड और क्लियर” प्रतिक्रिया मिलेगी।
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इसके अलावा, सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) नामक अभियान शुरू किया, जिसमें आतंकवादी ठिकानों पर हवाई-और जमीनी हमले की रणनीति अपनाई गई — रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान-नियंत्रित कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी शिविरों को निशाना बनाया गया था।
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उत्तर में उच्च चोटियों और घाटियों में आतंक का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा बलों की सक्रियता बढ़ाई गई।
3. सामाजिक और न्यायिक कदम
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जम्मू-कश्मीर सरकार ने मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की, गंभीर रूप से घायल हुए लोगों को भी आर्थिक सहायता दी गई।
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सुप्रीम कोर्ट ने हमले की निंदा की और माफी सभा में एक मिनट का मौन रखा।
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आतंकियों को हथियार बंद करने में स्थानीय एजेंसियों के खुफिया फेलियर पर जांच शुरू की गई। प्रारंभिक रिपोर्ट्स में कहा गया कि सुरक्षा एजेंसियों ने ग्राउंड-लेवल खतरों का आकलन पर्याप्त रूप से नहीं किया था।
4. राष्ट्रीय एकता और संदेश
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले को “देश-विरोधी साजिश” करार दिया। उन्होंने कहा कि यह आतंकवादियों की कोशिश थी कि जम्मू और कश्मीर में अस्थिरता लाकर देश को तोड़ें, लेकिन देश की एकता उनकी बड़ी ताकत है।
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कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने हमले की निंदा की। उदाहरण के लिए, ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) ने इस आतंकी घटना को मानवता पर प्रहार बताया और केंद्र से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की मांग की।
5. अंतरराष्ट्रीय और कूटनीतिक समर्थन
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दुनिया भर के नेताओं ने इस हमले की निंदा की। विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने भारत के साथ एकजुटता दिखाई।
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संयुक्त राष्ट्र ने भारत और पाकिस्तानी दोनों पक्षों से “अधिकतम संयम” बरतने की अपील की।
सुरक्षा रणनीति में बदलाव और भविष्य की दिशा
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Pahalgam घटना के बाद जम्मू-कश्मीर में एंटी-टेरर रणनीति में संशोधन किया गया। सुरक्षाबलों ने अधिक खुफिया आधारित ऑपरेशन शुरू किए, जिससे अप्रैल के बाद कई आतंकवादियों को मार गिराया गया है।
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यह रणनीति न सिर्फ प्रतिक्रिया में थी, बल्कि इससे यह भी संदेश गया कि भारत सिर्फ हमले पर ही प्रतिक्रिया نہیں देगा, बल्कि आतंकियों के मौजूदा नेटवर्क और ठिकानों पर लंबी अवधि के लिए नज़र रखेगा।
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इसके साथ ही, भारत ने आतंकवाद को मूल रूप से जड़ से खत्म करने की दिशा में कूटनीतिक दबाव बढ़ाया है — आतंकवाद का आरोप पाकिस्तान पर लगाया गया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी विश्वसनीयता को चुनौती दी जा रही है।
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आंतरिक खुफिया नेटवर्क को मजबूत करने की भावना भी स्पष्ट है: सुरक्षाबल अब ऐसी जगहों पर अधिक निगरानी बढ़ा रहे हैं जो पर्यटक-गमन वाले हैं लेकिन पहले कम सुरक्षित माने जाते थे।
चुनौतियाँ
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सुरक्षा चूक की आलोचना: विपक्ष और विभिन्न सामाजिक समूहों ने खुफिया एवं सुरक्षा फेलियर पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
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स्थिरता बनाम जवाबी कार्रवाई: कुछ आलोचकों का कहना है कि कड़े जवाबी कदमों (जैसे कूटनीतिक तनाव, पानी के वाटर ट्रीटी का निलंबन) से तनाव और बढ़ सकता है, जबकि भारत का उद्देश्य “पाकिस्तान को दरकिनार कर आतंक के स्रोत को संबोधित करना” होना चाहिए था, न कि केवल सैनिक या कूटनीतिक जलवायु बिगाड़ना।
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स्थानीय समर्थन: घाटी में पर्यटन और स्थानीय समुदायों को आमतौर पर सूचनात्मक और अस्थायी आर्थिक झटके का सामना करना पड़ता है, क्योंकि आतंकवादी घटनाएं उनकी आजीविका और सुरक्षा पर प्रत्यक्ष असर डालती हैं।
पहलगाम में हुए इस आतंकवादी हमले ने न सिर्फ भारत के आतंरिक सुरक्षा दृष्टिकोण को झकझोड़ा है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय दुनिया में एक संदेश भी है — कि आतंकवाद अभी तक पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और उसकी जड़ें गहरी हैं।
सरकार ने इस हमले के बाद तीव्र और बहुआयामी प्रतिक्रिया दी — जिसमें सैन्य मोर्चा, खुफिया रणनीति, कूटनीति और सामाजिक समेकन सभी शामिल हैं। भारत ने न केवल आतंकवादियों को जवाब देने की ठानी है, बल्कि उनकी नेटवर्क को तोड़ने की रणनीति पर भी काम किया है।
लेकिन यह यात्रा चुनौतियों से मुक्त नहीं है। भविष्य में सफल मुकाबला वही कर पाएगा जो खुफिया प्रणाली, स्थानीय निगरानी, और ग्लोबल दबाव को संतुलित कर सके। इस घटना ने न केवल भारत की सुरक्षा रणनीति को बदल दिया है, बल्कि यह साफ संकेत भी दिया है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ एक मोर्चे पर नहीं, बल्कि कई मोर्चों पर जारी रहनी चाहिए।