बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती या वेसाक के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र पर्व है। यह पर्व भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के तीन महत्वपूर्ण घटनाओं—जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण—की स्मृति में मनाया जाता है। साल 2025 में यह पर्व 12 मई को मनाया जाएगा, जो वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि है।
बुद्ध पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय
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तिथि प्रारंभ: 11 मई 2025 को रात 8:01 बजे
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तिथि समाप्त: 12 मई 2025 को रात 10:25 बजे
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उदयातिथि के अनुसार पर्व: 12 मई 2025 (सोमवार)
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चंद्रोदय समय: शाम 6:57 बजे
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विशेष योग: वरियान योग (पूरे दिन), रवि योग (सुबह 5:32 से अगले दिन सुबह 6:12 तक), भद्रावास योग (सुबह 9:14 तक)
भगवान बुद्ध का जीवन परिचय
भगवान बुद्ध का जन्म सिद्धार्थ गौतम के रूप में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। वे शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन और रानी माया देवी के पुत्र थे। राजसी जीवन के बावजूद, उन्होंने संसारिक सुखों में असंतोष महसूस किया और सत्य की खोज में निकल पड़े। लगभग 29 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग किया और वर्षों की तपस्या के बाद बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया। इसके पश्चात वे ‘बुद्ध’ कहलाए और अपने उपदेशों के माध्यम से बौद्ध धर्म की स्थापना की।
बुद्ध पूर्णिमा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
बुद्ध पूर्णिमा न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि हिंदू धर्म में भी विशेष महत्व रखती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का नवम अवतार माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान, और पूजा का विशेष महत्व होता है। बौद्ध अनुयायी इस दिन ध्यान, प्रार्थना, और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का स्मरण करते हैं।
पूजा विधि और परंपराएं
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स्नान और दान: प्रातःकाल पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है।
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बोधि वृक्ष की पूजा: बोधगया में स्थित बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था; अतः इस वृक्ष की पूजा की जाती है।
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खीर का भोग: मान्यता है कि ज्ञान प्राप्ति से पूर्व भगवान बुद्ध को सुजाता नामक स्त्री ने खीर का भोग अर्पित किया था; इसलिए इस दिन खीर का भोग लगाया जाता है।
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ध्यान और प्रवचन: मठों और विहारों में ध्यान सत्र और भगवान बुद्ध के उपदेशों का पाठन किया जाता है।
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दीप प्रज्वलन: शाम को दीप जलाकर भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
वैश्विक उत्सव
बुद्ध पूर्णिमा न केवल भारत में, बल्कि नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, जापान, चीन, और अन्य बौद्ध देशों में भी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इन देशों में विशेष प्रार्थना सभाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और जुलूस आयोजित किए जाते हैं। वेसाक के रूप में यह पर्व संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी मान्यता प्राप्त है और वैश्विक शांति और करुणा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
भगवान बुद्ध की शिक्षाएं
भगवान बुद्ध ने जीवन के दुखों से मुक्ति पाने के लिए ‘चार आर्य सत्य’ और ‘अष्टांगिक मार्ग’ की शिक्षा दी:
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दुख: जीवन में दुख अनिवार्य है।
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दुख का कारण: इच्छाएं और तृष्णा दुख का कारण हैं।
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दुख की निवृत्ति: इच्छाओं का त्याग करके दुख से मुक्ति संभव है।
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दुख से मुक्ति का मार्ग: अष्टांगिक मार्ग का पालन करके मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
अष्टांगिक मार्ग:
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सम्यक दृष्टि: सही दृष्टिकोण।
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सम्यक संकल्प: सही संकल्प।
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सम्यक वाक्: सही वाणी।
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सम्यक कर्म: सही आचरण।
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सम्यक आजीविका: सही जीविका।
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सम्यक प्रयास: सही प्रयास।
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सम्यक स्मृति: सही स्मृति।
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सम्यक समाधि: सही ध्यान।
इन शिक्षाओं का उद्देश्य व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करना और जीवन के दुखों से मुक्ति दिलाना है।
निष्कर्ष
बुद्ध पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जो हमें आत्मचिंतन, करुणा, और शांति की ओर प्रेरित करता है। भगवान बुद्ध की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। इस बुद्ध पूर्णिमा पर हम सभी को उनके उपदेशों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए और एक शांतिपूर्ण और करुणामय समाज की स्थापना में योगदान देना चाहिए।