हर वर्ष Devuthan Ekadashi या जिसे कभी-कभी Prabodhini Ekadashi, Deva‑Uthana Ekadashi आदि नामों से जाना जाता है —
विशेष रूप से वर्ष 2025 में यह एकादशी 1 नवंबर 2025 (शनिवार) को सुबह 09:11 AM से प्रारंभ होकर अगले दिन 02 नवंबर सुबह 07:31 AM तक तिथि चलने का समय बताया गया है।

अहमियत एवं पौराणिक कथा
“देवोुथान” का शाब्दिक अर्थ है — “देवों का जागना” या उठना। यानि इस दिन देवता जागते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, Vishnu (श्रीहरि) चातुर्मास के चार-महीने (यानि लगभग वर्ष के चार-पांच महीनों) के लिए शयन कर लेते हैं, जिसके पश्चात देवोुथान एकादशी के दिन वह पुनः जागते हैं।
इस तरह यह दिन नए आरंभों की ओर संकेत करता है — विवाह, गृहप्रवेश, नए कार्य आदि के लिए शुभ माना जाता है।
एक कथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा कि जब आप चातुर्मास में सोते हैं और जगते हैं तो संसार का क्रम प्रभावित होता है। तब विष्णु ने चार-महीनों का शयन तय किया और फिर इस दिवस (देवोुथान एकादशी) को जागरण का दिन माना गया।
यह दिन क्यों पर्व बन गया?
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चातुर्मास (जुलाई–अक्टूबर) के दौरान “शयनावस्था” के बाद भागदौर, कार्य, विवाह आदि पर ब्रेक-लगने की परंपरा थी। इसके बाद जब देव जागते हैं, तो समारोहों का आरंभ होता है।
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इस दिन से विवाह-मांगलिक कार्य और शुभ मुहूर्तों का शुभारंभ माना जाता है।
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व्रत और पूजा के माध्यम से पापों से मुक्ति, आत्मशुद्धि तथा भौतिक-आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति का अवसर माना गया है।
1 नवंबर 2025 के लिए तिथि-समय
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एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर 2025 सुबह 09:11 AM से
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एकादशी तिथि समाप्ति: 2 नवंबर 2025 सुबह 07:31 AM तक
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पारणा (व्रत खोलने) का विशेष मुहूर्त: 2 नवंबर को दोपहर/शाम के बीच — विभिन्न स्रोतों में 1:11 PM से 3:23 PM तक का समय दिया गया है।
व्रत-पूजा विधि
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सुबह जल्दी उठें, शुद्ध स्नान करें और पूजा-स्थल स्वच्छ करें।
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भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। तुलसी, पीले पुष्प, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) आदि से भोग लगाएं।
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दिनभर व्रत रखें — अनाज (धान्य) से विरत रहें, केवल फल-दूध-नट्स आदि ले सकते हैं।
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भक्ति-चर्चा: विष्णु सहस्रनाम, श्रीमद्भागवद् गीता के श्लोक, व्रत कथा आदि का पाठ करें।
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दान-पुण्य करें: ब्राह्मण-भूखे को भोजन, कपड़ा, तिल, धान आदि दान करना शुभ माना जाता है।
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द्वादशी तिथि में दिए गए पारणा मुहूर्त में व्रत खोलें।
क्या करें-न करें (दोष-वर्जित बातें)
करें:
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व्रत के दौरान मन को शांत रखें, भक्ति और सद्कर्म की ओर अग्रसर हों।
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पूजा-स्थल पर शुद्धता बनाएं रखें।
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व्रत के अवसर पर नए आरंभ (जैसे नया व्यापार, निवेश) का शुभ समय माना जाता है।
न करें:
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अनाज, दाल, आलू-प्याज-लहसुन जैसे भारी भोजन से दूर रहें (व्रत समय)।
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झगड़ा-कलह-नकारात्मक भावनाओं को व्रत के समय न पालें।
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पारणा-समय ईग्ला न करें — मुहूर्त से पहले न भोजन करें।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम
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इस दिन के बाद हिन्दू कैलेंडर में विवाह-उत्सवों, गृहप्रवेश, व्यापार आरंभ आदि को शुभ माना जाता है। अर्थात् यह एक नया आरंभ-काल माना जाता है।
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भारत के विभिन्न प्रांतों में इस एकादशी को लेकर स्थानीय रीति-रिवाज, मेला-जुलूस, मंदिर-प्रसाद आदि होते हैं।
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तुलसी विवाह की परंपरा भी इस दिन से जुड़ी है — तुलसी (विष्णुप्रिय) पौधे तथा भगवान विष्णु/देवी लक्ष्मी की विधिवत् पूजा होती है।
आज के समय में इसका महत्व
आज के तेजी से बदलते समय में जहाँ शहरी जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक चेतना कम होती जा रही है, वहाँ देवोुथान एकादशी हमें याद दिलाती है — «आरंभ की शक्ति», «नव-विकास का अवसर», «शुद्धता और समर्पण». इस दिन हम सिर्फ व्रत ही नहीं रखते, बल्कि अपने जीवन-पथ में एक नई दिशा तय कर सकते हैं: बेहतर संबंध, बेहतर कार्य, बेहतर स्वयं.
व्रत-पूजा के माध्यम से हम अपने कर्मों का हिसाब-किताब कर सकते हैं, पुराने बोझ को हल्का कर सकते हैं और नए सिरे से आगे बढ़ सकते हैं।
1 नवंबर 2025 को आने वाले देवोुथान एकादशी का दिन हम सभी के लिए शुभ मंगलमय अवसर है — चाहे आप प्रत्यक्ष व्रत करते हों या केवल इस दिव्य दिन की चेतना से जुड़े हों। यह दिन हमें याद दिलाता है कि ठहराव के बाद जागरण आता है, सोने के बाद उठान आता है।
तो आइए, इस दिन भगवान विष्णु को प्रणाम करें, श्रद्धा-भक्ति से व्रत या भगवान की पूजा करें, और अपने जीवन में नए आरंभ के लिए मन को, कर्म को तैयार करें।