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छठ पूजा 2025: 28 अक्टूबर को होगा सूर्य देव की आराधना का पावन महापर्व

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भारत के पूर्वी भागों में विशेष श्रद्धा से मनाई जाने वाली छठ पूजा (Chhath Puja) इस वर्ष 28 अक्टूबर 2025 को अपनी अंतिम आराधना के साथ पूर्ण होगी।
यह पर्व मुख्यतः बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के मिथिला/मधे provinces में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

Chath Puja

1. पर्व का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व

– छठ का अर्थ है ‘छठवाँ’ या ‘षष्ठी’ तिथि — यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। 
– यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य देव (Sun God) तथा छठी मैया (अपार रूप से छठी देवी) को समर्पित है। 
– सूर्य का महत्व इसलिए है क्योंकि वह सभी जीवों के लिए जीवन-दायिनी ऊर्जा का स्रोत है। छठ पूजा में इस ऊर्जा के लिए कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
– सामाजिक एवं पर्यावरण-सन्दर्भ में इसे “रिवरबैंक पूजा”, सादगी, तट-पर्यटन, समूह आस्था तथा प्राकृतिक तत्त्वों के आदर का पर्व माना गया है।
– कथा-शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि द्रौपदी एवं कर्ण जैसे पात्रों ने इस प्रकार के व्रत एवं सूर्य-उपासनाओं द्वारा मुक्ति-प्राप्ति या रक्षा-प्राप्ति की थी।

इस प्रकार छठ पूजा न केवल धार्मिक क्रिया है बल्कि यह आत्म-शुद्धि, परिवार-संघ, प्रकृति-संबंध एवं दायित्व-भाव का प्रतिबिम्ब भी है।

2. पूजा-व्रत-अनुष्ठान: चार दिवस का क्रम

छठ पूजा चार दिन (कई स्थानों पर) चलता है, जिनमें क्रमशः निम्नलिखित अनुष्ठान होते हैं:

दिन 1 – “नहाय-खाय”

  • इस दिन व्रती (प्रायः महिलाएं) सरोवर, नदी या तालाब में स्नान कर, पवित्र जल ले आते हैं।

  • घर को अच्छी तरह साफ-सुथरा किया जाता है; भोजन शुद्ध, सरल एवं शाकाहारी बनाया जाता है (प्याज़-लहसुन वगैरा से दूर)।

  • यह आत्म-शुद्धि और व्रत की शुरुआत है।

दिन 2 – “खरना”

  • इस दिन दिनभर व्रत रखा जाता है, शाम में पूजा के बाद खीर-रोटी-फल आदि अर्पित करके भोजन करते हैं।

  • इसके तुरंत बाद लगभग 36 घंटे का निर्जला (या अत्यल्प जल) व्रत आरंभ होता है।

दिन 3 – “संध्या अर्घ्य”

  • शाम के समय व्रती नदी/तालाब के किनारे खड़ी होकर अस्त सूर्य को अर्घ्य देती हैं।

  • प्रसाद-भेंट, पूजा-गीत-संघ योगदान इस दृश्य को व्यापक बनाते हैं।

दिन 4 – “उषा अर्घ्य” और व्रत परारण

  • प्रातः-काल सूर्योदय के समय व्रती पुनः पानी में खड़ी होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। The Annapurna Express+1

  • इसके बाद व्रत विघटन होता है और प्रसाद मित्र-परिवार में बाँटा जाता है।

इस प्रकार यह चार-दिनीय क्रम एक तीव्र संयम-भाव, एकता-भाव, प्रकृति-भाव और श्रद्धा-भाव का संयोजन है।

3. इस वर्ष की विशेष बातें (2025)

  • इस वर्ष छठ पूजा 25 अक्टूबर 2025 से प्रारंभ होकर 28 अक्टूबर 2025 को समाप्त हो रही है।

  • खास तौर पर यह ध्यान देने योग्य है कि भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को नदी-घाटों पर भारी संख्या में इकट्ठा होते देखा गया है — जिससे सफाई-व्यवस्था, सुरक्षा एवं समन्वय की चुनौतियाँ भी खड़ी हो रही हैं।

  • पर्व के दौरान पारंपरिक खाद्य-प्रसाद जैसे- ‘ठेकुआ’, ‘कदरू-भात’, ‘दाब-निम्बू’, ‘रासिओ’ आदि पर विशेष ध्यान दिया गया है।

4. क्या-क्या तैयारियाँ करना चाहिए

  • पूजा स्थल (नदी/तालाब) के किनारे पहुंचने से पहले बहती जल अवस्था, घाट की स्थिति, प्रकाश-व्यवस्था आदि का ध्यान रखें।

  • प्रसाद बनाने में शुद्धता (प्याज़-लहसुन वगैरा से मुक्त), सादगी, एवं समय-निष्ठा आवश्यक है।

  • व्रत के दौरान स्वास्थ्य-स्थिति पर विशेष ध्यान दें — निर्जला व्रत कठिन हो सकता है, अतः आवश्यकता महसूस हो तो चिकित्सीय सलाह अवश्य लें।

  • पर्यावरण-सुरक्षा की दृष्टि से प्लास्टिक-दिया-प्रदूषण कम करें। यह पर्व स्वच्छ-पर्यावरण-भाव से जुड़ा है।

  • परिवार-मित्रों के साथ मिल-जुलकर पूजा-संस्कृति को साझा करें — इससे सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव बढ़ता है।

5. छठ पूजा का संदेश

छठ पूजा का मूल संदेश है — प्रकृति-संबंध, श्रद्धा-संयम, परिवार-एकता, और जीवन-ऊर्जा (सूर्य) के प्रति कृतज्ञता। जब हम सूर्योदय-अस्त के समय नदी के तट पर खड़े होकर आराधना करते हैं, तो हम वास्तव में स्वयं को इस विशाल प्रकृति-चक्र का हिस्सा महसूस करते हैं।

पारंपरिक रूप से यह पर्व जात-पांत, आर्थिक स्थिति से ऊपर उठकर सबको एक मंच पर लाता है क्योंकि पूजा सरल है—मूर्ति-पूजा नहीं, नदी-उपासना है; बड़े-छोटे सब एक-समान श्रद्धा से खड़े होते हैं।

इस वर्ष यदि आप 28 अक्टूबर को छठ पूजा में शामिल हों, तो केवल एक धार्मिक आयोजन में नहीं जा रहे हैं — बल्कि एक ऐसी यात्रा में हैं जो आत्म-शुद्धि, समर्पण, संयम और प्रकृति-संबंध की है। अपने परिवार-साथियों के साथ अपनी स्थानीय नदी/तालाब पर सादगी से जुड़ें, प्रसाद-भेंट करें, व्रत के भाव को आत्मसात करें और सूर्य देव की किरणों में आशा-प्रभा देखें।

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