दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (आप) की करारी हार और अरविंद केजरीवाल की पराजय ने राजनीतिक हलकों में कई चर्चाओं को जन्म दिया। पिछले तीन कार्यकालों में दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद इस बार आम आदमी पार्टी को बड़ी शिकस्त झेलनी पड़ी। आइए जानते हैं, इस हार के 10 प्रमुख कारणों को विस्तार से।
1. सत्ता विरोधी लहर (एंटी-इंकम्बेंसी)
लगातार 10 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद, आम आदमी पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए सुधारों के बावजूद, प्रदूषण, जलभराव, यमुना नदी की दूषित स्थिति और ट्रैफिक की बढ़ती समस्याएं जनता की नाराजगी का कारण बनीं। इसके अलावा, यह धारणा बन गई थी कि केजरीवाल सरकार केंद्र सरकार पर दोष मढ़कर अपनी जिम्मेदारी से बच रही है।
2. भ्रष्टाचार के आरोप और गिरती छवि
केजरीवाल सरकार पर शराब नीति घोटाले और ‘शीश महल’ (सीएम हाउस के रेनोवेशन) विवाद ने उनकी ईमानदार छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी ने भी सरकार की छवि पर नकारात्मक असर डाला। मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को पारदर्शिता की बजाय भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी के रूप में देखना शुरू कर दिया।
3. अधूरे वादे और विकास कार्यों में कमी
आप सरकार ने वादे तो बहुत किए, लेकिन कई प्रमुख वादे अधूरे रह गए। इनमें 20 लाख नौकरियों का वादा, यमुना को साफ करने का लक्ष्य, नई बसों की संख्या में बढ़ोतरी और कॉलोनियों को नियमित करने जैसे विषय शामिल थे। दिल्ली के कई इलाकों में खराब सड़कों, जलभराव और सीवर की समस्या से लोग परेशान थे।
4. एमसीडी में आप की खराब परफॉर्मेंस
2022 में एमसीडी (नगर निगम) चुनावों में आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी, लेकिन इसके बावजूद सड़कों, कूड़ा प्रबंधन और सफाई व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ। भाजपा ने इसका फायदा उठाते हुए इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया और जनता को यह भरोसा दिलाया कि दिल्ली को बेहतर प्रशासन देने के लिए बदलाव जरूरी है।
5. पूजा-पाठ से जुड़े फैसलों पर असंतोष (पुजारियों का वेतन विवाद)
केजरीवाल सरकार ने मंदिरों में पुजारियों के वेतन में बढ़ोतरी का ऐलान किया था, जिससे हिंदू समुदाय को लुभाने की कोशिश की गई। हालांकि, यह नीति ठीक से लागू नहीं हो पाई, और कई पुजारियों को समय पर वेतन नहीं मिलने की शिकायतें सामने आईं। इसके अलावा, दिल्ली में कई धार्मिक संगठनों ने सरकार पर पक्षपाती रवैया अपनाने का आरोप लगाया। भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे को भुनाया, जिससे हिंदू वोट बैंक आप से खिसक गया।
6. कांग्रेस के साथ गठबंधन का असमंजस
लोकसभा चुनाव 2024 में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन नहीं हो पाया। इससे विपक्षी मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बनी, जिससे आप को नुकसान हुआ और भाजपा को फायदा मिला।
7. मध्यम वर्ग और व्यापारियों की नाराजगी
दिल्ली का मध्यम वर्ग और व्यापारी वर्ग केजरीवाल सरकार से नाखुश था। छोटे व्यवसायियों और दुकानदारों को सीलिंग ड्राइव, टैक्सेशन और लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं में परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, ‘रेवड़ी कल्चर’ (फ्री सुविधाओं) पर अत्यधिक ध्यान देने के कारण मध्यम वर्ग को लगा कि सरकार सिर्फ एक वर्ग विशेष को लाभ पहुंचा रही है।
8. विपक्षी उम्मीदवारों की मजबूत
भाजपा और कांग्रेस ने इस बार मजबूत उम्मीदवार उतारे। नई दिल्ली सीट पर भाजपा ने युवा और जमीनी स्तर के मजबूत उम्मीदवार को खड़ा किया, जिससे केजरीवाल की स्थिति कमजोर हो गई। भाजपा ने केजरीवाल के बजाय स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और एक प्रभावी चुनावी रणनीति अपनाई।
9. आम आदमी पार्टी के आंतरिक मतभेद
आप पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी भी इस हार की एक बड़ी वजह बनी। मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी के बाद पार्टी में नेतृत्व की कमी महसूस की गई। पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ता गया, और कुछ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी या निष्क्रिय हो गए।
10. ‘आम आदमी’ की छवि को नुकसान
केजरीवाल की सबसे बड़ी पहचान एक आम आदमी के नेता के रूप में थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनकी यह छवि कमजोर पड़ गई। उनके सरकारी आवास (सीएम हाउस) पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के खुलासे से जनता में नकारात्मक संदेश गया। चुनावों के दौरान भाजपा ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और इसे ‘विपरीत आचरण’ के रूप में प्रचारित किया।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की हार कई कारकों का परिणाम थी। सत्ता विरोधी लहर, भ्रष्टाचार के आरोप, अधूरे वादे, धार्मिक मुद्दों पर असमंजस, मध्यम वर्ग की नाराजगी और विपक्षी दलों की मजबूत रणनीति ने मिलकर आप की हार सुनिश्चित की। भाजपा ने अपनी मजबूत प्रचार मशीनरी और जमीनी संगठन के दम पर दिल्ली में सत्ता पर कब्जा कर लिया।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी इस हार से क्या सबक लेते हैं और आने वाले वर्षों में अपनी राजनीतिक रणनीति को कैसे सुधारते हैं।